फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित ओलंपिक खेलों में महिला मुक्केबाजी का स्वर्ण पदक जीतने वाली अल्जीरियाई मुक्केबाज इमाने खलीफ आज एक नए विवाद के केंद्र में हैं। एक लीक हुई मेडिकल रिपोर्ट ने उनकी लैंगिक पहचान पर सवाल खड़े किए हैं, जिसने न केवल खेल जगत में बल्कि दुनिया भर में बहस को जन्म दिया है।
फ्रेंच पत्रकार जाफार ऐत औडिया द्वारा प्राप्त इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खलीफ का XY क्रोमोसोम स्ट्रक्चर है और उनके अंदर मौजूद टेस्टिकल्स के चलते उनके शरीर में मेस्कुलाइनेशन के लक्षण पाए गए हैं। हालांकि उनके जन्म प्रमाणपत्र और पासपोर्ट के अनुसार वे महिला के रूप में अंकित हैं, यह तथ्य उनके ओलंपिक में भाग लेने के रास्ते में चुनौती बन सकता है।
रिपोर्ट में खलीफ के हालत को '5-अल्फा रिडक्टेस डेफिशिएंसी' कहा जा रहा है, जो एक आनुवंशिक विकार है। यह विकार उन व्यक्तियों के लैंगिक विकास को प्रभावित करता है जिनके अंदर ये स्थितियाँ होती हैं। यद्यपि इस विकार से प्रभावित व्यक्ति अधिकांशतः पुरुष जननांग लक्षणों के साथ जन्म लेते हैं, विकास के दौरान वे महिला जैसी बाहरी लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं।
इस वर्ष मार्च में इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (IBA) ने खलीफ को कार्डिनल टेस्ट में फेल होने के बाद नई दिल्ली में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप गोल्ड पदक मैच से बाहर कर दिया था। इसके बावजूद, इंटरनेशनल ओलम्पिक कमेटी (IOC) ने उन्हें पेरिस ओलंपिक में हिस्सा लेने की अनुमति दी। इस निर्णय ने खला-खल और अधिकारों की सीमा को लेकर गरमागरम बहस को जन्म दिया है।
खलीफ ने विवाद के जवाब में स्पष्ट रूप से कहा है, 'मैं एक महिला के रूप में जन्मी, एक महिला के रूप में जी रही हूँ और मेरी सभी उपलब्धियाँ मेरी पहचान की पुष्टि करती हैं।' उनकी यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि वे अपने खिलाफ उठाए गए सवालों का साहसपूर्वक सामना कर रही हैं और अपनी पहचान को लेकर संजीदा हैं।
सार्वजनिक हस्तियों के बीच भी इस मुद्दे को लेकर चर्चाएँ हो रही हैं। पीयर्स मॉर्गन और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे सार्वजनिक व्यक्तियों ने भी इस मामले पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इस मामले ने लोगों के बीच चर्चा को जन्म दिया है कि क्या लैंगिक पहचान के वर्तमान मानकों को फिर से परिभाषित किए जाने की जरूरत है।
यह मामला सिर्फ इमाने खलीफ के लिए नहीं है, बल्कि खेल जगत को उसके प्रतिभागियों की लैंगिक पहचान कैसे परखनी चाहिए, उस पर भी सवाल उठाता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि खेल संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे वैज्ञानिक तथ्यों के साथ नैतिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखें। यह उनसे अपेक्षित है कि वे ऐसे मामलों में गंभीर और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएं।
आगे आने वाले समय में यह देखना होगा कि इस प्रकार के मामले कैसे निपटाए जाते हैं और लैंगिक पहचान को लेकर खेल माध्यमों में कैसे निष्पक्षता को बरक़रार रखा जाता है। यह पूछा जा सकता है कि आगामी ओलंपिक और खेल प्रतियोगिताओं में संस्थाएँ खिलाड़ियों के लैंगिक विवादों को कैसे संभालेंगी और इसके लिए वे क्या कदम उठाएंगी।