साल 1999, कारगिल की ठंडी वादियां। भारत और पाकिस्तान के बीच हालात बेहद तनावपूर्ण थे। इसी दौरान भारतीय वायुसेना के फ्लाइट लेफ्टिनेंट कंबंपति नचिकेता को एक मिशन के तहत बटालिक सेक्टर में भेजा गया। वे ‘वुल्फपैक’ नाम की 9वीं स्क्वाड्रन के मिग-27 विमान पर सवार थे। उनके पास 80mm के रॉकेट और 30mm की कैनन थी, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तानी घुसपैठियों के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए होना था। लेकिन मिशन के दौरान, अचानक एक पाकिस्तानी मैनपैड्स मिसाइल उनके विमान से जा टकराई। नचिकेता को मजबूरन पैराशूट से कूदना पड़ा, और वे गलती से पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में जा गिरे।
नीचे उतरते ही नचिकेता की स्थिति नाजुक थी। उनके पास सिर्फ सर्विस पिस्टल थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुद को सरेंडर नहीं किया। पाकिस्तानी सैनिकों से घिर जाने के बाद, उन्होंने हथियार चलाए – जब तक कि गोलियां खत्म नहीं हो गईं। आखिरकार, उन्हें पाक सैनिकों ने पकड़ लिया। शुरुआती घंटों में खूब मारपीट की गई और उन्हें वहां के जवानों का गुस्सा झेलना पड़ा। अगर उस वक्त एक वरिष्ठ पाक अधिकारी न आते तो हालात और बिगड़ सकते थे। उनके पहुंचने से नचिकेता की जान बची। इसके बाद उन्हें रावलपिंडी की जेल में भेज दिया गया।
जब भारत को खबर मिली कि उसका एक पायलट दुश्मन के कब्जे में है, तो देश भर में बेचैनी थी। वाजपेयी सरकार के सामने मुश्किल चुनौती थी—जिंदगी या मौत के बीच फंसे अपने जवान को वापस लाना। भारत ने इस मुद्दे को तुरंत ‘जनवा कन्वेंशन’ (Geneva Convention) के तहत उठाया। अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (ICRC) का सहारा लिया गया ताकि बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ सके। गंभीर तनाव के माहौल में भी, पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया कि नचिकेता को सही सलामत लौटाना होगा। आठ दिन तक नचिकेता पाकिस्तानी कैद में रहे, पर आखिरकार भारत की कूटनीति रंग लाई। ICRC की पहल और जनवा कन्वेंशन के तहत उन्हें रिहा किया गया।
भारत लौटते ही नचिकेता का जोरदार स्वागत हुआ। उनकी बहादुरी के सम्मान में वायुसेना ने 'वायुसेना मेडल' दिया। पर युद्ध के मनोवैज्ञानिक असर और स्वस्थ्य चुनौतियों की वजह से अब वे फाइटर जेट नहीं, बल्कि ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाने लगे।
उनकी कहानी जब 2019 में विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के पाकिस्तान में पकड़े जाने के बाद फिर से चर्चा में आई। दोनों ही मामलों में भारत ने कूटनीतिक तेवर दिखाए और अपने जवान की सुरक्षित वापसी करवाई। ऐसे मामलों ने ये साफ कर दिया कि भारतीय सरकार अपने सैनिकों के लिए हर स्तर पर लड़ने के लिए तैयार है—फिर चाहे मामला सीमा का हो या बातचीत की टेबल का।