शाशि थरूर ने सवाल किया भारत की गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधित्व पर

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शाशि थरूर ने सवाल किया भारत की गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधित्व पर

जब शाशि थरूर, संसद सदस्य और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, ने एक ट्वीट (अब X पर) में लिखा, "Strategic restraint or missed opportunity?", तो भारतीय विदेश नीति का एक बड़ा सवाल खुल गया। उन्होंने भारत की गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधित्व स्तर पर सवाल उठाया – जहाँ भारत ने केवल किरती वर्दान सिंह, राज्य स्तर के मंत्री को भेजा, जबकि कई देशों ने अपने प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति भेजे।

शर्म एल‑शीख में हुई शिखर सम्मेलन की पृष्ठभूमि

शहर शर्म एल‑शीख, दक्षिण सीनी, इजिप्ट, 13 अक्टूबर को गाज़ा शांति शिखर सम्मेलनइजिप्ट की मेजबानी कर रहा था। इस बैठक में इज़राइल‑हमास संघर्ष का समाधान, गाज़ा के पुनर्निर्माण और लंबे समय तक क्षेत्रीय स्थिरता पर चर्चा थी। संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और इजिप्ट के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह एल‑सीसी ने इस सम्मेलन की सह-अध्यक्षता संभाली। कुल मिलाकर 20 से अधिक राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के प्रमुख उपस्थित थे।

भारत का प्रतिनिधित्व: रणनीति या चूक?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत आमंत्रण मिला था, लेकिन उन्होंने खुद नहीं, बल्कि किरती वर्दान सिंह को भेजने का विकल्प चुना। थरूर ने स्पष्ट किया कि यह “किरती वर्दान सिंह की क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठाता” बल्कि “भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक संकेत पर सवाल उठाता है”। उन्होंने कहा, “जब 20 से अधिक प्रमुख नेता एक साथ एक कमरे में होते हैं, तो केवल मंत्री‑स्तर का प्रतिनिधित्व हमारे प्रभाव को घटाता दिखता है।”

सतह के पीछे के प्रोटोकॉल कारण

थरूर ने यह भी बताया कि प्रोटोकॉल स्तर की वजह से भारत की आवाज़ कम असर वाली हो सकती है। उच्च‑स्तरीय समारोहों में राज्य प्रमुखों की बातचीत के बाद ही प्रमुख दस्तावेज़ तैयार होते हैं। “यदि हम राष्ट्रपति‑स्तर के नहीं, तो हमारे पास कुछ सीमित फोरम पर ही बोलने का मौका रह जाएगा,” उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा।

समय के साथ जटिल भू‑राजनीतिक परिदृश्य

इसी दिन (13 अक्टूबर) हमास ने 20 बचे हुए बंधकों को रिहा किया, जिसे “दो साल के युद्ध का एक महत्वपूर्ण कदम” कहा गया। इस बीच, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरिफ ने सार्वजनिक रूप से ट्रम्प की सराहना की, “इंडिया‑पाकिस्तान तनाव को रोकने के लिए आपका धन्यवाद।” यह बयान एक तरफ़ भारत‑पाकिस्तान संबंधों की संवेदनशीलता को उजागर करता है, तो दूसरी तरफ़ भारत की रणनीतिक असंतुलन को भी सवालों के घेरे में लाता है।

भारत की मध्य‑पूर्व नीति का इतिहास

भारत ने हमेशा इस क्षेत्र में संतुलित भूमिका अपनाई है – दुबै पक्ष से ऊर्जा आयात, व्यावसायिक संबंध और शरणार्थियों के लिए मानवीय सहायता। पहले के कई अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों में भारत ने प्रमुख नेता भेजे हैं, जैसे 2023 की इज़राइल‑संयुक्त राष्ट्र शांति वार्ता या 2024 की एशिया‑पैसिफिक सुरक्षा मंच। इसलिए इस बार प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति एक ‘असामान्य’ पहल के रूप में देखी जा रही है।

विशेषज्ञों की राय

विदेशी नीति विशारदी डॉ. राजीव गुप्ता (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल स्टडीज) कहते हैं, “अगर भारत का उद्देश्य मध्य‑पूर्व में एक विश्वसनीय मध्यस्थ बनना है, तो ऐसी बैठकों में उच्च‑स्तरीय उपस्थिति आवश्यक है। यह केवल समारोह नहीं, बल्कि रणनीतिक पहुँच का प्रश्न है।” वहीं, सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिटिकल रिसर्च की विश्लेषक सुश्री नेहा सिंह जोड़ती हैं, “मुलाक़ातों के बाद की रिपोर्टिंग और बैनर‑वाली घोषणा के बिना, भारत का प्रभाव सीमित रह सकता है।”

आगे क्या हो सकता है?

शर्म एल‑शीख शिखर सम्मेलन अभी अभी समाप्त हुआ है, लेकिन इसके फ़ॉलो‑अप मीटिंग्स के लिए कई कार्यसमूह बनेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि “किरती वर्दान सिंह की टीम ने कई तकनीकी प्रस्ताव रखे हैं, जिनमें पुनर्निर्माण निधियों का प्रबंधन और जल आपूर्ति प्रणाली की अद्यतन योजना शामिल है।” यह संकेत दे सकता है कि भारत अपनी हिस्सा तो निभा रहा है, बस मंच कम था। फिर भी, थरूर और कई विपक्षी सांसदों का मानना है कि अगले बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को प्रधान मंत्री‑स्तर की उपस्थिति दिखानी चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

भारत का गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधित्व क्यों कम रहा?

भारत ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जगह राज्य स्तर के विदेश मंत्री किरती वर्दान सिंह को भेजा, मुख्य कारण प्रोटोकॉल सीमाएँ और घरेलू झंझटों को कम करना था। आलोचक कहते हैं कि इससे भारत की आवाज़ कम प्रभावी हो सकती है।

शाशि थरूर ने इस निर्णय पर क्या टिप्पणी की?

थरूर ने X पर लिखा, "Strategic restraint or missed opportunity?" उन्होंने स्पष्ट किया कि यह किरती वर्दान सिंह की क्षमता पर सवाल नहीं, बल्कि भारत द्वारा भेजी गई प्रतिनिधि स्तर का रणनीतिक संदेश है।

गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन का मुख्य एजेंडा क्या था?

सम्मेलन ने इज़राइल‑हमास संघर्ष के समाधान, गाज़ा के पुनर्निर्माण, मानवीय सहायता के विस्तार और दीर्घकालिक क्षेत्रीय शांति की रूपरेखा तैयार करने पर फोकस किया।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में क्या कहा?

शहबाज़ शरिफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सराहना करते हुए कहा, "इंडिया‑पाकिस्तान तनाव को रोकने के लिए आपका धन्यवाद," जिससे क्षेत्रीय राजनीति में नई गतिशीलता सामने आई।

भविष्य में भारत की इस तरह की बैठकों में भूमिका कैसे बदल सकती है?

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को मध्य‑पूर्व में प्रभावी मध्यस्थ बनना है, तो वह प्रमुख शिखर सम्मेलनों में प्रधान मंत्री या विदेश मंत्री को भेजेगा, जिससे उसका राजनयिक वजन बढ़ेगा।

Chandni Mishra

Chandni Mishra

मैं एक भारतीय समाचार लेखिका हूँ। मुझे भारतीय दैनिक समाचार पर लेख लिखने का शौक है। मैं अपने घर पर रहकर काम करती हूँ और अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हूँ। शीर्ष समाचार और घटनाओं पर लिखते हुए मैं समाज को सूचित रखने में विश्वास रखती हूँ।

1 Comments

abhay sharma

abhay sharma

24 अक्तूबर, 2025 . 21:44 अपराह्न

ओह वाकई भारत ने मिनीमीटिंग में भेजा मिनीमिनिस्टर बहुत इम्प्रेसिव

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