सोचिए, सुबह-सुबह जब शहर की चर्चित कॉलोनी में एक पुराने राजनेता के घर पुलिस और NIA की गाड़ियों की भीड़ लग जाए, लोग सच में चौंक जाते हैं। ठीक ऐसा ही नजारा 18 सितंबर 2024 को गया की AP कॉलोनी में देखने को मिला, जब NIA की टीमों ने पूर्व JDU एमएलसी मनोरमा देवी के घर और उनके निर्माण कंपनी के प्लांट समेत कुल पांच जगहों पर अचानक छापेमारी की। कोई आम तलाशी नहीं थी, पूरी तैयारी के साथ पुलिस फोर्स सुरक्षा घेरे में और जांच घंटों चली। इसे माओवादी गतिविधियों से जुड़े एक केस में सबसे बड़े कदमों में गिना जा रहा है।
बिहार के लिए ये छापे कोई नई बात नहीं, मगर जब नाम किसी पुराने नेता का हो और घर से लेकर व्यापारिक ठिकानों तक तलाशी हो तो हलचल ज्यादा होती है। मामला एक साल पुरानी एफआईआर से जुड़ा है—NIA ने अगस्त 2023 में CPI (माओवादी) के संदिग्ध नेटवर्क को लेकर केस दर्ज किया था, जिसे सितंबर में फिर से एक्टिव किया गया। जांच का फोकस माओवादी गिरोह के लोगों और उनके मददगारों की पहचान करना है—यानी देखना कि कहीं राजनेता या कारोबारी अपने रसूख का फायदा उठाकर संगठन को दोबारा मजबूती तो नहीं दे रहे।
इतना ही नहीं, जांच में सफेदपोशों की संभावित भूमिका को भी शक की नजर से देखा जा रहा है। मनोरमा देवी का बयान भी सामने आया—“मेरे पास रखे पैसों का हर कागज है।” एजेंसी ने फिलहाल जब्त सामान और दस्तावेजों की डिटेल नहीं दी है, जिससे अटकलबाजी और बढ़ गई।
सूत्रों ने बताया कि मनोरमा देवी के दिवंगत पति बिंदेश्वरी यादव पर पहले भी नक्सलियों को कारतूस सप्लाई करने का आरोप लगा था, जिनकी गाड़ी से सैंकड़ों कारतूस मिले थे। ऐसे में मौजूदा छापेमारी सिर्फ ‘रैंडम सर्वे’ नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही संदिग्ध गतिविधियों की सीधी कड़ी भी है। इस जांच के दायरे में न सिर्फ मनोरमा देवी का घर बल्कि उनका बोध गया स्थित निर्माण प्लांट भी आया, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि एजेंसियों को माओवादी नेटवर्क को सपोर्ट करने में आर्थिक या लॉजिस्टिकल मदद की तलाश है।
आम तौर पर ऐसे मामलों में स्थानीय राजनीति में खलबली मच जाती है। इलाके के जानकारों का कहना है कि NIA का फोकस उन लोगों पर है, जो सतह पर तो ‘क्लीन’ दिखते हैं, मगर मामूली शक भी जांच का हिस्सा बनता जा रहा है। इस छापेमारी से साफ है कि अब एजेंसियों की पकड़ महज हथियारबंद गिरोहों तक सीमित नहीं, बल्कि उन सफेदपोश मददगारों तक पहुंच रही है, जिनके बिना माओवाद जैसा नेटवर्क अपनी जड़ें नहीं फैला सकता।
अब सबकी नजर NIA की आगे की कार्रवाइयों पर टिकी है कि मनोरमा देवी समेत और कौन-कौन इस जांच के घेरे में आ सकते हैं। जाहिर है, बिहार की राजनीति और माओवादी गतिविधियों की जड़ें फिर सुर्खियों में हैं।