जब हम भगवान शिव, हिंदू धर्म में अष्टम सिद्धान्त के प्रमुख देवता, विनाश व नवीनीकरण के साकार रूप. Also known as शिव, वह राय, शक्ति और शांति का स्रोत माना जाता है। भगवान शिव त्रिदेव में प्रमुख देवता है, जो सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और संहार को संतुलित करता है। इस सतत परिवर्तन में शिव का धूम्र‑धुंध वाला स्वरूप शीतल ज्योति का प्रतीक बन जाता है, जिससे जीवन में रीसेट बटन दबाने जैसा अनुभव मिलता है।
एक बार हम त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा मिलकर निर्मित दिव्य तिकड़ी की बात करें तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक देवता का अपना कार्य क्षेत्र है। त्रिदेव में भगवान शिव निर्माण और संरक्षण के बाद विनाश के कार्य को संभालता है, जिससे सृष्टि का चक्र निरंतर चलता रहता है। इस तिकड़ी में संतुलन बनाये रखने की भूमिका शिव की ही है, और यही कारण है कि बहुत से लोग उनके व्रत और मंत्रों को अपनी जीवनशैली में शामिल करते हैं।
जब हम नटराज, सृष्टि, संरक्षण और संहार को एक ही नृत्य में दर्शाने वाले शिव के रूप की चर्चा करते हैं, तो समझते हैं कि इस नृत्य में सारे ब्रह्मांडीय प्रक्रियाएँ समाहित हैं। नटराज का नृत्य, ताल‑बद्ध ध्वनि और गति के माध्यम से यह बताता है कि सृष्टि का निर्माण, उसके नियमों का पालन और अंत में उसका विनाश सभी एक ही ताल में होते हैं। यही कारण है कि नटराज को अक्सर ‘सब कुछ का नर्तक’ कहा जाता है, जो शांति और ऊर्जा दोनों को एक साथ प्रदान करता है। दूसरी ओर, भस्मेश्वर, भस्म में लिपटा शाश्वत स्वरूप, जो परिवर्तन और निष्क्रियता दोनों को दर्शाता है रूप हमें जीवन की अस्थायीता की याद दिलाता है। भस्मेश्वर नाम स्वयं बताता है कि वह भस्म से निर्मित है, जिससे वह न केवल शारीरिक रूप में बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी परिवर्तन के साथ जुड़ा है। इस रूप में शमन और तनाव कम करने के लिए कई लोग धूप, बेलपत्र और गंगajal से अभिषेक करते हैं, क्योंकि भस्म में छिपी शुद्धता को आत्मा के सफ़ायर के रूप में माना जाता है। इन दो रूपों के बीच कड़ी यह है कि नटराज का नृत्य भस्मेश्वर के शान्त रूप को भी समेटे हुए है – एक ऊँचा उर्जावान नृत्य और एक स्थिर शांति दोनों एक ही अस्तित्व में सह-अस्तित्व रखते हैं। यही कारण है कि शिव की पूजा में नृत्य के साथ साथ अन्न, धूप और शिला को भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
एक और प्रमुख पहलू है महाकाल, भयानक लेकिन निष्कपट स्वरूप, जो समय और मृत्यु के प्रतीक के रूप में ज्ञात है। महाकाल को अक्सर उज्जैन के काड़े के प्रमुख रूप में देखा जाता है, जहाँ उनके भयानक रूप का त्याग कर लोग समय के चक्र में अपने आप को स्थापित करने की कोशिश करते हैं। महाकाल का स्वरूप यह बताता है कि जीवन की गति को समझना और उसकी सीमा को पहचानना आध्यात्मिक विकास की कुंजी है। यह रूप सभी शैलियों में मौजूद है – चाहे वह शिवरात्रि के हरिद्रावली में हो या कुंडली में शिवस्थली के रूप में, महाकाल का प्रभाव गहरा और सर्वव्यापी है। इन सभी रूपों, गुणों और प्रतीकों को समझकर हम न केवल धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी संतुलन स्थापित कर सकते हैं। चाहे आप आध्यात्मिक राह पर हों या सिर्फ संस्कृति में रुचि रखते हों, भगवान शिव से जुड़ी इन विभिन्न पहलुओं को जानना एक समृद्ध अनुभव देगा। नीचे आप विभिन्न लेखों, समाचारों और कहानियों की एक चुनिंदा सूची पाएँगे, जो शिव के विभिन्न आयामों को उजागर करेंगे और आपको उनके बारे में नई जानकारी देंगे।
सावन सोमवार व्रत 2024 का शुभारंभ सोमवार, 22 जुलाई से हो रहा है और यह 19 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान भगवान शिव के भक्त सावन माह के हर सोमवार को व्रत रखते हैं। उत्तर भारत और दक्षिण भारत में व्रत की तारीखें अलग हो सकती हैं। भक्त व्रत के दौरान अनाज और मांसाहारी भोजन से परहेज करते हैं और फलों, दूध और अन्य सात्विक भोजन का सेवन करते हैं।
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