भारत-चीन संबंध – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

जब भारत-चीन संबंध, दो एशियाई महाशक्तियों के बीच राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा के क्षेत्र में परस्पर जुड़ी गतिशीलता की बात आती है, तो सबसे पहले सीमा विवाद, हिमालय की सीमा पर चल रहे असहमति के मामले, व्यापार संबंध, वैश्विक स्तर पर परस्पर निर्यात‑आयात की मात्राएँ और कूटनीति, उच्च स्तर की राजनयिक वार्ताओं और समझौते सामने आते हैं। ये तीन मौलिक स्तम्भ पिछले दशक में कई बार बदलते परिदृश्य को आकार देते रहे हैं।

मुख्य पहलू

पिछले शताब्दी के शुरुआती दशकों में सिल्क रूट ने भारत और चीन को व्यापारिक पुल बनाया, जिससे बौद्ध धर्म, कला और विज्ञान के आदान‑प्रदान को बढ़ावा मिला। इस इतिहासिक बंधन ने दोनों देशों के बीच भारत-चीन संबंध को सांस्कृतिक नींव दी, और आज भी नई तकनीकी सहयोग के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

1962 का युद्ध, 1975 का शिमला समझौता और 2020 की गालवां घाटी टक्कर ने सीमा अभ्यंतरण को जटिल बना दिया। हर संघर्ष के बाद दोनो पक्षों ने सीमा रेखा, अस्पष्ट सीमा खंडों की पहचान को पुनः परिभाषित करने की कोशिश की, जिससे सुरक्षा‑परिप्रेक्ष्य में नई रणनीतियाँ उभरीं।

वाणिज्यिक दृष्टि से 2024 में द्विपक्षीय व्यापार $120 बिलियन से ऊपर पहुंच गया, जिसमें भारत मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक घटकों, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल्स निर्यात करता है, जबकि चीन भारत को मशीनरी, सॉफ्टवेयर और उपभोक्ता वस्तुएँ भेजता है। यह दो‑तरफा व्यापार संबंध, वस्तु और सेवा प्रवाह का परस्पर निर्भर नेटवर्क आर्थिक स्थिरता के लिए अभिन्न है।

राजनीतिक स्तर पर दोनों देशों ने शेनझेन‑डेल्ही इकोनॉमिक कॉरिडोर, ब्रिक्स (BRICS) और स्कॉ (SCO) के माध्यम से निरंतर संवाद किया है। इन मंचों पर कूटनीति, सहयोगी समझौते और बहुपक्षीय संकल्प दोनों देशों के रणनीतिक हितों को जोड़ती है, जिससे वैश्विक मुद्दों पर समन्वय संभव हो पाया।

सैन्य स्वरूप में भारत-चीन सीमा के पास तेज़ी से उन्नत तकनीक‑आधारित निगरानी प्रणाली स्थापित की जा रही है, जबकि दोनों पक्ष साइबर‑सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा में भी साझेदारी बढ़ा रहे हैं। ये पहलें सुरक्षा सहयोग, आधुनिक खतरों के विरुद्ध संयुक्त रणनीति को बल देती हैं।

उद्योग‑प्रेरित सांस्कृतिक आदान‑प्रदान, जैसे फिल्म फेस्टिवल, छात्रवृत्ति और पर्यटन वृद्धि, लोगों‑से‑लोग संपर्क को सुदृढ़ बनाते हैं। इस प्रकार सांस्कृतिक संबंध, संगीत, कला और शैक्षिक सहयोग आर्थिक और राजनयिक बंधनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं।

2025 में दो‑देशीय व्यापार वार्ता और उच्च स्तर की शिखर बैठक ने नई निवेश योजना की घोषणा की, जिससे ऊर्जा, डिजिटल बुनियादी ढांचा और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में सहयोग का विस्तार हो सकता है। इन नवीनतम विकासों को समझने से पाठक बेहतर भविष्य‑दृष्टि बना सकते हैं।

इन सभी तत्वों को देखना दर्शाता है कि भारत-चीन संबंध केवल प्रतिद्वंद्विता नहीं, बल्कि विविध आयामों में जुड़ी एक जटिल प्रणाली है। नीचे दी गई सामग्री में आप इन पहलुओं की गहराई, आँकड़े और विशेषज्ञों की राय पाएंगे, जो आपके समझ को और व्यापक बनाएगी।

भारत-चीन संबंधों पर पीएम मोदी के बयान पर चीन की प्रतिक्रिया

पीएम नरेंद्र मोदी के भारत-चीन संबंधों पर दिए गए सकारात्मक बयान का चीन ने स्वागत किया है। चीन ने द्विपक्षीय संबंधों को 'ड्रैगन-हाथी नृत्य' के रूप में आतंरिक करने की बात कही और 75वीं राजनयिक वर्षगांठ को साझेदारी को मजबूत करने के अवसर के रूप में देखा। पी.एम. मोदी ने कज़ान सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग से भी मुलाकात की थी।

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