जब महिला मुक्केबाजी, ऐसी एक खेल है जहाँ महिलाएँ विभिन्न वजन वर्गों में रिंग में एक-दूसरे से टक्कर देती हैं, अक्सर Women's Boxing का जिक्र सुनते हैं, तो कई लोगों को याद आता है मैरी कॉम की जुगलबंदी या लवलीना बोरगोहैन की ऑलिम्पिक जीत। पर यही सिर्फ शुरुआत है – इस खेल ने भारत में कई नई कहानियाँ लिखी हैं, और अब यह अगले पाँच साल में और भी ज्यादा चमकेगा।
समझें तो ऑलिम्पिक बॉक्सिंग, एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जहाँ महिला मुक्केबाजी को बराबर मान्यता मिलती है। यह प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ पदक नहीं देता, बल्कि वज़न‑वर्ग, प्रशिक्षण मानक और प्रतिस्पर्धी रणनीति को भी ग्लोबल बनाता है। इसलिए जब हम कहते हैं कि महिला मुक्केबाजों की प्रेरणा अक्सर ऑलिम्पिक जीत से आती है, तो यह वाक्य सत्य होता है: ऑलिम्पिक बॉक्सिंग महिला मुक्केबाजी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाती है।
अब बात करें वज़न वर्ग, विभिन्न बॉक्सिंग टर्नामेंट में शरीर के वजन के आधार पर निर्धारित श्रेणियाँ की। इन वर्गों में 45 किलोग्राम से 75 किलोग्राम तक कई डिवीजन हैं, जिससे हर महिला एथलीट अपनी प्राकृतिक शक्ति के हिसाब से प्रतिस्पर्धा कर सकती है। भारत में बॉक्सिंग क्लब अक्सर इन वर्गों को अलग‑अलग ट्रैनिंग मॉड्यूल में बाँटते हैं, जिससे एथलीट का प्रदर्शन अधिकतम हो सके। यह समझना कि “महिला मुक्केबाजी में वजन वर्ग होते हैं” एक आवश्यक व्याख्या है, क्योंकि यह सीधे प्रशिक्षण की दिशा तय करता है।
एक और मुख्य इकाई है भारतीय महिला बॉक्सर, ऐसे खिलाड़ी जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। मैरी कॉम, लवलीना बोरगोहैन, और नवीनतम प्रतिभा जैसे स्वाति रामन और जलेना लोहिया ने विश्व चैंपियनशिप, एशिया गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतकर इस खेल को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे हैं। उनका सफर केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे देश की आकांक्षा को दर्शाता है – “भारतीय महिला बॉक्सर विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतते हैं” इस बात का प्रमाण है।
जब बात आती है बॉक्सिंग फेडरेशन, वह संगठन जो राष्ट्रीय स्तर पर बॉक्सिंग को संचालित करता है की, तो हम बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (BFI) का ज़िक्र करते हैं। BFI न केवल टूरनामेंट का आयोजन करता है, बल्कि प्रशिक्षण केंद्र, कोचिंग सर्टिफ़िकेशन और एंटी‑डोपिंग नीति भी स्थापित करता है। यह संस्था महिला मुक्केबाजों को सुसंगत मैदान, आधुनिक उपकरण और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कोचिंग प्रदान करके खेल को प्रोफेशनल बनाती है। इस प्रकार “बॉक्सिंग फेडरेशन महिला मुक्केबाजों को व्यवस्थित प्रशिक्षण देता है” एक स्पष्ट संबंध स्थापित करता है।
आज कई राज्य में इन फेडरेशन‑स्वामित्व वाले अकादमी में युवा लड़कियाँ ताकत, तकनीक और मानसिक दृढ़ता पर काम कर रही हैं। शिखर पर पहुँचने के लिए खिलाड़ी को केवल शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि रणनीतिक समझ भी चाहिए – “प्रशिक्षण सुविधा तकनीकी और मानसिक पहलुओं को जोड़ती है” इस कथन से यह स्पष्ट होता है। भारत में प्रमुख केंद्र दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और पंचायती में स्थित हैं, जहाँ राष्ट्रीय स्तर की कोचिंग और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए चयन प्रक्रिया चलती है।
इन सभी घटकों को मिलाकर देखें तो महिला मुक्केबाजी एक ऐसा इकोसिस्टम बनती है जहाँ वज़न वर्ग, ऑलिम्पिक मंच, भारतीय बॉक्सर्स, और फेडरेशन आपस में जुड़ते हैं। इस इकोसिस्टम से निकली मुख्य सीख यह है कि अगर आप नई एथलीट बनना चाहते हैं या मौजूदा खिलाड़ियों को सपोर्ट करना चाहते हैं, तो आपको इन सभी पहलुओं का ध्यान रखना होगा। आगे की सूची में आप देखेंगे कि कैसे भारत की महिला मुक्केबाजें विभिन्न टूरनामेंट में अपना जलवा बिखेर रही हैं और कौन से अपडेट्स आपको इस खेल के बारे में और जानने में मदद करेंगे।
अल्जीरिया की मुक्केबाज इमाने खलीफ, जिन्होंने पेरिस ओलंपिक में महिला मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक जीता, उनके लैंगिक पहचान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। एक लीक मेडिकली रिपोर्ट के अनुसार खलीफ की लैंगिक स्थिति पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खलीफ को एक आनुवंशिक विकार है जो लैंगिक विकास को प्रभावित करता है। इस विवाद ने उनके ओलंपिक में भाग लेने की पात्रता को लेकर बहस को जन्म दिया है।
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