जब हम बात वाजपेयी सरकार, 1999‑2004 तक भारत का केन्द्रिय प्रशासन, वाजपेयी मंत्रिमंडल की करते हैं, तो दो प्रमुख आयामों को याद रखना फायदेमंद है: अर्थव्यवस्था, वाजपेयी सरकार की आर्थिक नीतियां और विदेश नीति, अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में इस अवधि की दिशा। इन दोनों ने मिलकर राष्ट्रीय विकास की गति तय की। सरकार ने आर्थिक उदारीकरण (उदाहरण‑स्वरूप नकद कटौती, व्यापार आसान) को तेज किया, जबकि विदेश क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारियों को सुदृढ़ किया। यह संघटन बताता है कि वाजपेयी सरकार ने आर्थिक और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर कई बदलाव किए।
वाजपेयी सरकार के तहत दो प्रमुख नीति‑त्रिप्लेट्स उभरे: 1) आर्थिक स्थिरता ↔ निवेश‑उत्साह ↔ बजट अधिनियम; 2) सुरक्षा‑रक्षा ↔ बाहरी‑संबंध ↔ विनिर्माण। पहला त्रिपलेट बताता है कि वित्तीय बजट में टैक्स कटौती और एरंडर वाक्प्रसाद द्वारा आरएफआई में वृद्धि से विदेशी पूँजी का प्रवाह बढ़ा। दूसरा त्रिपलेट दर्शाता है कि भारत‑पाकिस्तान शांति प्रक्रिया, कश्मीर में सुरक्षा उपाय, और संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय भूमिका ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति को सुदृढ़ किया। साथ ही, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम और दूरसंचार सुधार ने ग्रामीण‑शहरी अंतर को घटाने में मदद की। ये सभी बिंदु इस तथ्य को उजागर करते हैं कि इस सरकार ने सामाजिक‑आर्थिक विकास को तेज करने के लिये कई आयामों को एक साथ जोड़ा।
इन नीतियों का दीर्घकालिक असर आज‑कल के विकास मॉडल में दिखाई देता है। यदि आप नीचे प्रस्तुत लेखों को पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि कैसे आर्थिक सुधार, रक्षा‑नीति और गठबंधन politics ने भारत को आज की स्थिति तक पहुँचाया। अब आगे आने वाले लेखों में हम प्रत्येक पहलू को विस्तार से देखेंगे, चाहे वह 1999‑2000 के बजट की बारीकी हो या 2004 के चुनावी परिणामों का विश्लेषण। तो चलिए, इस संग्रह में डुबकी लगाते हैं और वाजपेयी सरकार की कहानियों को एक‑एक कर समझते हैं।
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के फ्लाइट लेफ्टिनेंट कंबंपति नचिकेता को पकड़े जाने के बाद वाजपेयी सरकार ने उनकी सुरक्षित वापसी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए। आठ दिन पाकिस्तान की जेल में बिताने के बाद उन्हें रिहा कराया गया, जिससे भारत की कूटनीतिक ताकत सामने आई।
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