अखिल भारतीय रैंक 1 का खिताब जीतने वाली शक्ति दुबे ने न सिर्फ एक परीक्षा जीती, बल्कि एक सामाजिक मान्यता को तोड़ दिया। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक साधारण पुलिस उपनिरीक्षक की बेटी, जिसके घर में बिजली के बिल के लिए भी दो बार सोचना पड़ता था, ने आज देश के सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया। शक्ति दुबे, 29, ने UPSC नागरिक सेवा परीक्षा 2024 में अखिल भारतीय रैंक 1 प्राप्त की, जिसकी घोषणा प्रयागराज के नैनी क्षेत्र में उसके घर पर त्योहार की तरह मनाई गई। यह उसकी पांचवीं कोशिश थी — पिछले साल में वह मुख्य परीक्षा पास हो गई थी, लेकिन साक्षात्कार में फेल हो गई थी।
शक्ति के पिता, देवेंद्र कुमार दुबे, प्रयागराज ट्रैफिक पुलिस में उपनिरीक्षक हैं। उनकी आय बहुत कम है, लेकिन उनका संकल्प अनंत है। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "हम सब लोग पिछले साल ही उसके पास होने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन वह सिर्फ एक कदम पीछे रह गई। मैं बहुत निराश रहा।" लेकिन आज, जब उसकी नाम रैंक 1 के साथ दिखा, तो उनकी आंखों में आंसू थे। "आज मैं महसूस कर रहा हूँ कि वह बस नहीं पास होने वाली थी, बल्कि टॉप करने वाली थी।"
शक्ति ने अपनी तैयारी के दौरान दिल्ली में रहकर अपना जीवन बिताया, लेकिन कोविड-19 ने उसकी राह बिल्कुल बदल दी। लाइब्रेरी बंद हो गईं, कोचिंग सेंटर बंद हो गए, और ऑनलाइन क्लासेज में इंटरनेट की कमी ने उसे बार-बार रोक दिया। फिर भी, वह रोज सुबह 5 बजे उठती, अपनी माँ के साथ चाय बनाती, और फिर पढ़ने बैठ जाती। उसकी माँ का नाम अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ, लेकिन उनकी चुपचाप की सहायता ने शक्ति को आगे बढ़ने का साहस दिया।
शक्ति ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमएससी में स्वर्ण पदक जीता था। वह अपने अध्ययन के दौरान विज्ञान के गहरे सिद्धांतों को समझती थी — और उसी तरह, उसने सिविल सेवाओं के लिए भी अपने विचारों को तर्कसंगत ढंग से व्यक्त किया। उसके साक्षात्कार में एक प्रश्न था: "आप एक छोटे से शहर से आई हैं, आपको लगता है कि आप दिल्ली के बड़े उम्मीदवारों के साथ कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं?" उसने जवाब दिया: "मैं अपने घर के बाहर नहीं, अपने दिमाग के भीतर लड़ रही हूँ।"
उसकी तैयारी का असली रहस्य उसकी लगातार आत्मविश्वास था। पिछले वर्ष के साक्षात्कार में फेल होने के बाद, उसने अपने दोस्तों से कहा: "मैं नहीं टूटूंगी।" उसने अपनी त्रुटियों को एक डायरी में लिखा — हर गलती के बाद एक नया सबक। वह लगातार रिवाइज करती रही, एक लेख लिखती रही, एक सामाजिक मुद्दे पर विश्लेषण करती रही। जब रिजल्ट आया, तो उसने पहले यकीन नहीं किया। "मैंने तीन बार रिलोड किया। फिर भी लगा जैसे कोई गलती हुई हो।"
हर्षिता गोयल ने रैंक 2 हासिल की — एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, जिसके पिता ने माँ की मृत्यु के बाद परिवार को राजस्थान से गुजरात ले आया। प्रीति एसी, रैंक 263, उसके पिता चन्नबसप्पा की कहानी है — जो कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन बेटी के लिए सरकारी शिक्षा के जरिए उसे एमएससी तक पहुँचाए। और फिर है मलविका, जिसने छठी कोशिश में आईआरएस बनने का सपना पूरा किया — अपने नवजात बच्चे की देखभाल के बीच, अपने पति, माता-पिता और बहन की मदद से।
ये सब कहानियाँ एक ही बात कहती हैं: UPSC कोई अमीरों की खेल की मेज नहीं है। यह एक ऐसी दरवाजा है जो हर उस व्यक्ति के लिए खुलता है, जो अपने सपनों के लिए लड़ने को तैयार हो।
प्रयागराज से अब तक किसी ने UPSC में टॉप किया ही नहीं था — न ही राज्य के अन्य छोटे शहरों में। यह शक्ति की जीत सिर्फ एक व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत है। अब एक छोटे शहर की लड़की जाने लगी है कि वह भी इस चुनौती को जी सकती है। उसके पिता की यूनिफॉर्म, उसकी माँ की चाय, उसके घर का छोटा सा बेडरूम — ये सब अब देश के लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
शक्ति अगले हफ्ते अपनी आधिकारिक नियुक्ति के लिए दिल्ली जाएगी। लेकिन उसने कहा है कि वह अपने घर को नहीं भूलेगी। उसके पिता की ओर से अभी तक कोई राज्य सरकारी पुरस्कार की घोषणा नहीं हुई है — लेकिन जब वह एक आईएएस अधिकारी बनेगी, तो उसकी पहली नियुक्ति शायद प्रयागराज के ट्रैफिक डिपार्टमेंट में होगी। उसके लिए यह एक गहरा संकल्प है: जहाँ से वह आई है, वहीं से शुरुआत करेगी।
शक्ति ने 2023 में मुख्य परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन साक्षात्कार में फेल हो गई। उसकी तैयारी में एक बड़ी कमी थी — वह अपने विचारों को आत्मविश्वास से व्यक्त नहीं कर पा रही थीं। इस बार उसने साक्षात्कार के लिए विशेष ट्रेनिंग ली, जिसमें उसने अपने पिता के साथ रोज़ डिबेट किए। उसकी सच्चाई, अपने पृष्ठभूमि के प्रति निष्ठा और अपने अनुभवों को स्पष्ट करने की क्षमता ने उसे टॉप बनाया।
प्रयागराज से अब तक कोई भी उम्मीदवार UPSC में अखिल भारतीय रैंक 1 प्राप्त नहीं कर पाया है। यह शक्ति दुबे की जीत इस शहर के इतिहास में एक नया मोड़ है। पिछले दशक में इस शहर से केवल कुछ उम्मीदवार मुख्य परीक्षा पास हुए, लेकिन साक्षात्कार में फेल हो गए। उनकी सफलता ने न केवल शहर के लिए, बल्कि छोटे शहरों के लिए भी एक नया मानक बनाया है।
अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। हालाँकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले वर्षों में UPSC टॉपर्स को ₹10 लाख तक का पुरस्कार दिया है। लेकिन शक्ति के मामले में, उसकी पहचान नकदी से ज्यादा उसके परिवार के समर्थन और उसकी लगन से जुड़ी है। अगर कोई पुरस्कार मिले, तो वह शायद उसके पिता की नौकरी के लिए एक अतिरिक्त सम्मान के रूप में दिया जाएगा।
शक्ति ने कोचिंग के बजाय सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल किया — बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी, डीएलएस की निःशुल्क ऑनलाइन क्लासेज, और यूपीएससी के पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र। उसने खुद को एक रिसर्चर के रूप में विकसित किया। उसकी तैयारी का आधार नोट्स बनाना था, न कि बड़े कोचिंग सेंटरों के बारे में बात करना। यही उसकी सफलता का रहस्य है।
शक्ति ने कहा है कि वह एक ऐसी अधिकारी बनना चाहती है जो छोटे शहरों के लोगों की आवाज़ बन सके। उसके पिता की यादगार नौकरी और उसकी माँ की चुपचाप की सहायता ने उसे समझाया कि शासन क्या है। वह चाहती है कि अगली बार कोई छोटे शहर की लड़की उसकी तरह नहीं डरे — बल्कि उसकी तरह आगे बढ़े। आईएएस बनना उसके लिए एक पद नहीं, एक वचन है।